तब उड़गयी थी हमारी नींदें
तब तक थी गर्मी पसीना
ठंडा पानी ठंडी हवा थी कहीं न
धीमी सी मिठ्ठी की खुशबू
दिल पे हमारा न था काबू
हम घर से निकालकर टूट पढ़े थे आँगन में
बहुत मज़ा आया था खेलने पानी में
जब हमने चेहरा आसमान के तरफ उठाया था
पानी की बूंदों ने हमारे चेहरे पर चार चाँद लगाया था
जब उन बूंदों को चूवा था सूरज की किरणों ने
ऐसा लग रहा था हमारा चेहरा सजा है सुन्दर मोतियों से
जब हमारे आँखों से काजल बहने लगा था
"अब बहुत देर हुई " ऐसा मन को लगने लगा था
हमारे कपडे तो हुए थे सारे गीले गीले
बरसात में भीगकर हम होगये थे पीले पीले
चारों तरफ दिखने लगी थी हरियाली
धरती लगने लगी थी दुल्हन नयी नवेली
- रेविना
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